Income Tax Return 2025: टैक्स नोटिस से बचने के लिए समय पर भरें ITR, जानें F&O ट्रेडिंग के नियम

Income Tax Return 2025: देश में इन दिनों शेयर बाजार का जोश हर किसी को अपनी ओर खींच रहा है। नौकरीपेशा लोग हों या छोटे-बड़े निवेशक, हर कोई ट्रेडिंग सीखकर मुनाफा कमाने की राह पर है। खासकर फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) सेगमेंट में ट्रेडिंग करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। लेकिन इस उत्साह के बीच एक जरूरी बात जो हर ट्रेडर को ध्यान में रखनी चाहिए, वह है समय पर इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) दाखिल करना।
अगर आप भी शेयर बाजार में निवेश या ट्रेडिंग करते हैं, तो टैक्स नियमों की जानकारी और सही ITR फॉर्म चुनना आपके लिए बेहद जरूरी है। ऐसा न करने पर टैक्स नोटिस का सामना करना पड़ सकता है, जो अनावश्यक तनाव का कारण बन सकता है।
F&O ट्रेडिंग और टैक्स के नियम
F&O सेगमेंट में इंट्रा-डे ट्रेडिंग की लोकप्रियता बढ़ रही है, लेकिन कई ट्रेडर्स को टैक्स नियमों की पूरी जानकारी नहीं होती। नतीजा, जब टैक्स नोटिस आता है, तो परेशानी शुरू हो जाती है। F&O ट्रेडिंग में टर्नओवर की गणना हर ट्रेड से होने वाले प्रॉफिट और लॉस के आधार पर की जाती है।
अगर ट्रेडिंग में नुकसान होता है, तो टर्नओवर का हिसाब और भी जटिल हो जाता है। उदाहरण के लिए, अगर आपने एक ट्रेड में 10,000 रुपये का मुनाफा कमाया और दूसरे में 5,000 रुपये का नुकसान हुआ, तो आपका कुल टर्नओवर 15,000 रुपये होगा।
खास बात यह है कि स्पेकुलेटिव लॉस को केवल स्पेकुलेटिव गेंस के साथ ही समायोजित (ऑफसेट) किया जा सकता है, और दोनों का एक ही वित्तीय वर्ष में होना जरूरी है। नियमों के मुताबिक, स्पेकुलेटिव लॉस को चार साल तक कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है। वहीं, नॉन-स्पेकुलेटिव लॉस को उसी वित्तीय वर्ष में किसी भी प्रकार की आय (सैलरी को छोड़कर) के साथ समायोजित किया जा सकता है, और इसे आठ साल तक कैरी फॉरवर्ड करने की छूट है। यह ट्रेडर्स को टैक्स प्लानिंग में काफी मदद करता है।
नॉन-स्पेकुलेटिव बिजनेस इनकम और खर्चों में छूट
F&O ट्रांजैक्शन को भारत में नॉन-स्पेकुलेटिव बिजनेस इनकम माना जाता है। इसका मतलब है कि ट्रेडिंग से होने वाला प्रॉफिट या लॉस बिजनेस या प्रोफेशन के तहत टैक्स के दायरे में आता है। इसलिए, F&O ट्रेडिंग से होने वाली आय को ITR में बिजनेस इनकम के रूप में दिखाना जरूरी है।
अच्छी बात यह है कि ट्रेडर्स को ट्रेडिंग से जुड़े खर्चों को कम करने की छूट मिलती है। इसमें ब्रोकरेज चार्जेज, ट्रांजैक्शन कॉस्ट, इंटरनेट और टेलीफोन बिल, लैपटॉप या अन्य एसेट्स पर डेप्रिशिएशन, और ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की सब्सक्रिप्शन फीस जैसे खर्च शामिल हैं। इन खर्चों को घटाकर ट्रेडर अपने टैक्स बोझ को कम कर सकते हैं।
समय पर ITR दाखिल करने की जरूरत
शेयर बाजार में निवेश और ट्रेडिंग का दौर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसके साथ टैक्स नियमों का पालन करना भी उतना ही जरूरी है। सही ITR फॉर्म चुनकर और समय पर रिटर्न दाखिल करके आप न केवल टैक्स नोटिस से बच सकते हैं, बल्कि अपनी टैक्स प्लानिंग को भी बेहतर बना सकते हैं।
अगर आप F&O ट्रेडिंग में सक्रिय हैं, तो टर्नओवर की गणना, लॉस के समायोजन और खर्चों की छूट जैसे नियमों को समझना आपके लिए फायदेमंद होगा। समय पर सही कदम उठाएं, ताकि शेयर बाजार का यह रोमांचक सफर बिना किसी रुकावट के चलता रहे।