राजा ने छोड़ी 20 हजार करोड़ की संपत्ति, 30 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से बेटियों को मिला इंसाफ

फरीदकोट रॉयल प्रॉपर्टी मामले में अब 30 साल की उम्र में बेटियों को सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिला है. 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति, हीरे-जवाहरात, बैंक बैलेंस, किला-महल और 30 साल लंबी कानूनी लड़ाई। 
राजा ने छोड़ी 20 हजार करोड़ की संपत्ति, 30 साल बाद सुप्रीम कोर्ट से बेटियों को मिला इंसाफ

फरीदकोट रॉयल प्रॉपर्टी मामले में अब 30 साल की उम्र में बेटियों को सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिला है. 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति, हीरे-जवाहरात, बैंक बैलेंस, किला-महल और 30 साल लंबी कानूनी लड़ाई। वो भी इसलिए क्योंकि बच्चों को कुछ नहीं मिला। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे सुलझा लिया। ये कहानी है फरीदकोट के महाराजा हरिंदर सिंह की, जिनका वसीयत-संबंधी विवाद बुधवार को सामने आया।

30 साल लंबी इस कानूनी लड़ाई में, सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा है, जिसने महाराजा की बेटियों अमृत और दीपेंद्र कौर को लगभग 20,000 करोड़ रुपये की संपत्ति में बहुमत हिस्सेदारी दी थी।

मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलों और इच्छाओं और अन्य मामलों की जांच करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिस पर बुधवार को सुनवाई हुई।

क्या कहा चीफ जस्टिस यूयू ललित ने?

मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने कहा, “एक बार वसीयत साबित हो जाने और कानूनी रूप से निष्पादित होने के बाद, वसीयत में विशेष खंड के मामले में, शासक द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में महारानी मोहिंदर कौर का हिस्सा स्वाभाविक रूप से वसीयत द्वारा शासित होगा। इसलिए उच्च न्यायालय के निष्कर्ष बिल्कुल सही थे और उस तरफ से कोई चुनौती लेने का कोई कारण नहीं है।

महारवाल खेवाजी ट्रस्ट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रस्ट 30 सितंबर तक केवल चैरिटेबल अस्पताल चलाने का हकदार होगा, जिसके बाद वह एक रिसीवर की नियुक्ति सहित प्रबंधन, वित्त और अन्य नियंत्रण के सभी पहलुओं को अपने हाथ में ले लेगा. .जो एक अधीनस्थ न्यायालय द्वारा अत्यावश्यक मामलों में एक डिक्री को निष्पादित करने के लिए पारित किया जा सकता है।

ट्रस्ट के बारे में क्या कहा ?

महरवाल खेवाजी ट्रस्ट का कहना है कि हरिंदर सिंह की वसीयत के मुताबिक वह संपत्ति के हकदार हैं। महाराजा की दो जीवित बेटियों ने उसे चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि महाराजा की संपत्ति में भी बहुत सारी पैतृक संपत्ति थी।

गौरतलब है कि वर्ष 2013 में चंडीगढ़ जिला न्यायालय ने वसीयत को वैध घोषित करते हुए बेटियों को संपत्ति दे दी थी। लेकिन ट्रस्ट ने हाईकोर्ट में अर्जी दी। उच्च न्यायालय ने 2020 में जिला अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां सिर्फ बेटियों की जीत हुई।

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