
केंद्र सरकार लाने जा रही दलबदल का नया कानून, बस आधा अधूरा न बने

केंद्र सरकार दलबदल का नया कानून लाने जा रही है। अस्सी के दशक में तब की राजीव गांधी सरकार ने जो दलबदल कानून बनाया था उसमें कई बार संशोधन हो चुका है।
पिछले कुछ बरसों में नेताओं के पार्टी छोडऩे की जैसी प्रवृत्ति देखने को मिली है और जिस तरह के घटनाक्रम देखने को मिले हैं उनसे लग रहा है कि नया कानून समय की जरूरत है।
लेकिन इस बार कानून आधा अधूरा नहीं बनना चाहिए। उससे भी ज्यादा जरूरी यह है कि सिर्फ व्यावहारिक राजनीतिक पहलू को ध्यान में रख कर कानून नहीं बनाना चाहिए, बल्कि राजनीति की शुचिता का भी ध्यान रखते हुए कानून बनना चाहिए।
बताया जा रहा है कि नया दलबदल कानून सिर्फ विधायकों, सांसदों यानी चुने हुए प्रतिनिधियों पर ही लागू नहीं होगा, बल्कि पंजीकृत पार्टियों के पदाधिकारियों पर भी नया कानून लागू होगा। इसका मतलब है कि किसी रजिस्टर्ड पार्टी का पदाधिकारी भी दलबदल करता है तो उसे दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
इसके साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि नए कानून के तहत चुनाव से छह महीने पहले दलबदल करने वाले पदाधिकारी को भी किसी दूसरी पार्टी की टिकट से चुनाव लडऩे से रोका जा सकता है। वह चाहे तो निर्दलीय चुनाव लड़ सकता है।
कानून का यह प्रावधान चुने हुए प्रतिनिधियों को भी चुनाव लडऩे से रोकेगा। यानी अगर चुनाव से छह महीने पहले कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में जाता है तो वह उस पार्टी से चुनाव नहीं लड़ पाएगा।
उसे निर्दलीय लडऩा होगा। ध्यान रहे सबसे ज्यादा संख्या में दलबदल चुनाव से पहले होता है। एक पार्टी से चुने हुए प्रतिनिधि जब अपना कार्यकाल पूरा कर लेते हैं तो चुनावी हवा को बूझते हुए ऐन चुनाव से समय पार्टी बदल लेते हैं।
दूसरी पार्टी भी उन्हें खुशी खुशी टिकट दे देती है। जैसे इस बार गुजरात विधानसभा के लिए चुने गए आधा दर्जन से ज्यादा कांग्रेस के विधायक भाजपा की टिकट से लड़ रहे हैं।
अभी सूत्रों के हवाले से जो बातें सामने आ रही हैं उनसे लग रहा है कि सरकार ने कर्नाटक, मध्य प्रदेश या महाराष्ट्र में चुनी हुई सरकारों को गिरा कर नई सरकार बनाने के घटनाक्रम का ध्यान नहीं रखा गया है।
इनका ध्यान रखते हुए यह प्रावधान किया जाना चाहिए कि चुने हुए प्रतिनिधि अगर पार्टी छोड़ते हैं और अपनी विधायकी या सांसदी से इस्तीफा देते हैं तब भी पांच साल तक उनके चुनाव लडऩे पर रोक रहेगी। चुनाव से छह महीने पहले इस्तीफा देने वालों के लिए जो नियम बनाया जा रहा है वह पूरे पांच साल के लिए रहे।
यानी पांच साल में कभी भी कोई चुना हुआ प्रतिनिधि पार्टी छोड़ता है तो दूसरी किसी पार्टी से वह चुनाव नहीं लड़ पाए। इसी तरह गठबंधन बदल को लेकर भी कानून में प्रावधान किया जाना चाहिए। एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लडऩे वाले गठबंधन की पार्टियां चुनाव के बाद एक निश्चित समय तक गठबंधन तोड़ कर दूसरे गठबंधन के साथ न जा सकें, इसका भी नियम बनना चाहिए।