80 दिनों में बनें मालामाल, कम लागत में करें इस फसल की खेती

Business idea: इस समय देश के लगभग सभी राज्यों में रबी फसलों की कटाई शुरू हो चुकी है। रबी की फसल के बाद ख़रीफ़ की खेती की जाती है। वहीं, ख़रीफ़ सीज़न की खेती जून के महीने में शुरू होती है, लेकिन इन दोनों सीज़न के बीच बहुत अंतर होता है।
80 दिनों में बनें मालामाल, कम लागत में करें इस फसल की खेती
दून हॉराइज़न, नई दिल्ली 

जिसके कारण कई किसान अपने खेत खाली छोड़ देते हैं। ऐसे किसान अपने खाली खेतों का उपयोग कर सकते हैं। गेहूं से लेकर सरसों तक की फसलों की कटाई लगभग समाप्ति पर है. इसके बाद खेत एक महीने से ज्यादा समय तक खाली रहता है, जिसके बाद खरीफ की फसल बोई जाती है.

ऐसे में किसान खाली पड़े खेतों में तिल की खेती कर सकते हैं. जिससे किसानों को भी अच्छा मुनाफा मिल सकता है. आइए जानते हैं तिल की खेती कैसे की जाती है और खेती करते समय किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

तिल की खेती एवं सिंचाई कैसे करें

तिल की खेती के लिए दोमट बलुई मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। इसमें तिल बहुत अच्छे से उगते हैं. मिट्टी का चयन करने के बाद खेत की रोटावेटर से जुताई करें. फिर कल्टीवेटर से खेत की दो से तीन बार जुताई करें. इसके बाद बीज बो दें. बीज बोते समय इस बात का ध्यान रखें कि बीज एक पंक्ति में हों।

वहीं पौधों के बीच 12 से 15 सेमी की दूरी होनी चाहिए. किसी भी फसल की पैदावार काफी हद तक उसकी सिंचाई पर निर्भर करती है। ऐसी स्थिति में पहली सिंचाई बुआई के 20 दिन बाद करनी चाहिए. ठीक 7 दिन बाद दूसरी सिंचाई भी करनी चाहिए.

फसलों में कीटनाशकों का प्रयोग

तिल की फसल को बचाने के लिए कीट रोग प्रबंधन के लिए बुआई से पहले 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई खाद और नीम की खली का प्रयोग करें. इसके बाद बीजों को मित्र कवक ट्राइकोडर्मा विराइड 4 ग्राम प्रति बीज की दर से उपचारित करके बोयें।

इस फफूंद को 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद को बीज के साथ मिलाकर मिट्टी में डालें। खड़ी फसलों में कीट नियंत्रण के लिए नीम आधारित कीटनाशक का छिड़काव 30-40 दिन और 45-55 दिन बाद करें।

तिल की फसल की कटाई कब करें

जब तिल की 75 प्रतिशत पत्तियां एवं तने पीले पड़ जाएं तो समझना चाहिए कि फसल पक गई है। जबकि कटाई में लगभग 80 से 95 दिन का समय लगता है. जल्दी कटाई करने से तिल के बीज पतले और बारीक हो जाते हैं, जिससे उनकी उपज कम हो जाती है। उपज सामान्यतः 6 से 7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

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