बारिश से मौत के गाल में समा गए इतने लोग, कहीं जल बम तो कहीं सूखे से बिलबिला रही जिंदगियां, जानिए डिटेल

आश्विन मास के शुरू होते ही सभी देशवासियों के मन में एक ही उमंग होती है कि जल्द से जल्द हिन्द महासागर से उठने वाले मानसून की कुछ बूंदों की बौछार उनके घर के सूखते आंगन में भी हो। भारत में ये मानसूनी हवा हिन्द महासागर और अरब सागर की ओर से बहाने वाली हवाओं पर निर्भर करती है, जब ये मानसून हवा दक्षिण पश्चिम तट से टकराती है तो भारत के सहित आसपास के अनेक देशों में बारिश होती है।
भारत में अगर मानसून है तो जीवन है, क्योंकि यह देश एक कृषि प्रधान है। इस देश की अधिकांश अर्थव्यवस्था भी कृषि पर आधारित है। जुलाई के महीने में प्रत्येक किसान के जुबां पर एक ही बात होती है कि शीघ्र ही जल बरसे और उनकी फसल में भी जान पड़े, क्योंकि अधिक गर्मी होने के कारण पानी का स्तर भी काफी नीचे चला जाता है।
इसके चलते किसानों को फसलों में पानी देने में काफी समस्याएं आती हैं और उनकी फसलें मुर्झा जाती हैं। अगर वर्षा होती है तो इससे किसानों को बहुत बड़े पैमाने पर फायदा मिलता है, जिससे सूखती फसलें लहलाने लगती हैं। इससे उनकी जेब का ख़र्च कम हो जाता है और राहत का भी अहसास होता है।
कहीं बारिश से खुशी तो कहीं मातम
देशभर के कई राज्यों में मानसूनी बारिश ने ऐसा तांडव मचाया, जिससे सैकड़ों लोग मौत के गाल में समा गए। तमिलनाडु और गुजरात जैसे राज्यों में तो बुरा हाल है। यह ही नहीं कि बारिश सिर्फ लाभ ही करती है, क्योंकि जिसका लाभ है उसकी हानि भी है।
कई राज्यों में तो वहां सूखे जैसी स्थिति उतपन्न हो जाती है। जब बारिश एक ही क्षेत्र में अधिक पड़ती है तो उस जगह बाढ़ आने के संभावनाएं बढ़ जाती हैं और यही स्थिति एक विकराल रूप धारण कर लेती है। इससे काफी बड़े पैमाने पर फसलें बर्बाद हो जाती हैं।
देश में खाद्यान की कमी के कारण उनकी भाव आसमानों में पहुंच जाते हैं।बढ़ते भाव को देखते हुए मजदूर वर्ग का व्यक्ति उन्हें खरीदने में असमर्थ प्रतीत होता है। इसलिए अधिक व कम वर्षा का होना भी हानिकारक है। अगर देश में खाद्यान की कीमतों के भाव इतनी ऊंचाई पर होंगे और इसकी उपलब्धता भी कम होगी तो भारत जैसे विशाल देश की जनता का पेट भरना मुश्किल हो जाएगा l
यहां होती है कम बारिश
कम वर्षा वाले स्थानों की बात करें तो लेह,बीकानेर और जैसलमेर जैसी जगाहों पर बहुत कम मात्रा में वर्षा देखने को मिलती है, जिसके कारण यहां पर फसलें भी अच्छे से नहीं हो पाती हैं। मोनसून इन इलाकों में काफी कम ही पहुंचता है जिससे यह गर्मी का पारा हमेशा चढ़ा रहता है। सूखे से भी देशभर में जानें जाती रहती हैं।
अगर आपको याद हो तो द्वितीय विश्व युद्ध के समय देश के पूर्वी राज्यों में सूखे की स्थिति देखने को मिली थी, जिसमें पश्चिम बंगाल,बिहार तथा ओडिशा भी शामिल है। यह बात है 1943-44 की इस वर्ष यहां पर सूखा पड़ने की वजह से फसलें नष्ट हो गयीं थीं।
इस कारण यहां पैदावार में भारी गिरावट आई और बाज़ारों में चावलों के दाम काफी बढ़ गए,जिससे निम्न स्तर के लोग इन्हें खरीदने में असमर्थ थे। इस भुखमरी के कारण यहां 30 लाख से ज्यादा लोग भूख से बिलबिलाते हुए मर गए।
इस वर्ष कोलकाता की सड़कों पर इंसानों की लाशों और हड्डियों के अलावा कुछ नज़र नहीं आ रहा था। इसलिए इसे अब तक भारत के सबसे बड़े अकाल के रूप में जाना जाता है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि यह लेखक शिवम कुमार के जुटाए गए आंकड़े है, जिसकी तस्दीक वह स्वयं करते हैं।