BJP National President : नया बीजेपी अध्यक्ष चुनने में इतनी देरी क्यों? पर्दे के पीछे की बड़ी कहानी

BJP National President : बीजेपी के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन गुजरात और उत्तर प्रदेश में देरी के कारण टल सकता है। संगठन में बड़े बदलाव और युवा नेताओं को मौका मिलेगा। बिहार चुनाव से पहले मंत्रिपरिषद फेरबदल में एआईएडीएमके को जगह मिल सकती है। नए अध्यक्ष संगठन को मजबूत करेंगे।
BJP National President : नया बीजेपी अध्यक्ष चुनने में इतनी देरी क्यों? पर्दे के पीछे की बड़ी कहानी

BJP National President : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अगले राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है। यह सवाल हर कार्यकर्ता और समर्थक के मन में कौंध रहा है कि आखिर पार्टी की कमान अब किसके हाथों में सौंपी जाएगी। हालांकि, इस महत्वपूर्ण फैसले में अभी और वक्त लग सकता है।

सूत्रों की मानें तो गुजरात और उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव में देरी के चलते राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन अगले महीने तक टल सकता है। जनवरी में होने वाला यह चुनाव अब अप्रैल के मध्य तक भी पूरा नहीं हो सका है।

संगठन में बड़े बदलाव की तैयारी

बीजेपी के संगठन और केंद्र सरकार में जल्द ही बड़े पैमाने पर बदलाव देखने को मिल सकते हैं। नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के बाद पार्टी की सर्वोच्च निर्णायक संस्था, संसदीय बोर्ड, में दिग्गज नेताओं को शामिल किया जा सकता है। पार्टी का फोकस एक ऐसे नेता को अध्यक्ष बनाने पर है, जो संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार कर सके। इस बार राजनीतिक, जातिगत या क्षेत्रीय संदेश देने की बजाय संगठन की ताकत बढ़ाने वाले नेता को प्राथमिकता दी जा रही है।

आम सहमति का इंतजार

नए अध्यक्ष के चयन को लेकर अभी तक पार्टी में आम सहमति नहीं बन पाई है। बीजेपी एक ऐसे चेहरे की तलाश में है, जो संगठन को नई दिशा दे और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को एकजुट कर सके। सूत्रों के अनुसार, नए अध्यक्ष के नेतृत्व में राष्ट्रीय महासचिवों की टीम में भी बड़ा फेरबदल होगा।

करीब आधे महासचिवों की छुट्टी हो सकती है, जबकि युवा और ऊर्जावान नेताओं को मौका दिया जाएगा। मौजूदा तीन महासचिवों को नई टीम में दोबारा जगह मिल सकती है। इसके अलावा, केंद्र सरकार से कुछ नेताओं को संगठन में लाने की योजना भी है।

जमीनी कार्यकर्ताओं पर भरोसा

बीजेपी ने अपने संगठनात्मक चुनावों में जमीनी कार्यकर्ताओं को हमेशा तरजीह दी है। जिला अध्यक्षों के चुनाव में 60 वर्ष की आयु सीमा तय की गई है, हालांकि कुछ अपवाद भी देखने को मिले हैं। संगठन में कम से कम 10 वर्षों से सक्रिय कार्यकर्ताओं को ही जिम्मेदारी सौंपी गई है। केरल में राजीव चंद्रशेखर जैसे अपवाद इस नीति को और दिलचस्प बनाते हैं। यह दर्शाता है कि बीजेपी अनुभव और नए चेहरों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रही है।

मंत्रिपरिषद में फेरबदल की सुगबुगाहट

दूसरी ओर, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंत्रिपरिषद में बदलाव की चर्चा जोरों पर है। इस फेरबदल में सहयोगी दलों को भी जगह मिलने की संभावना है। हाल ही में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा बनी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) को मंत्रिपरिषद में शामिल किया जा सकता है। बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह बदलाव और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

भविष्य की राह

बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक ऐसे नेता को चुनने की है, जो संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ आगामी चुनावों में पार्टी को नई ऊंचाइयों तक ले जाए। नए अध्यक्ष का चयन न केवल पार्टी के भविष्य को आकार देगा, बल्कि केंद्र सरकार और सहयोगी दलों के साथ समन्वय को भी प्रभावित करेगा। कार्यकर्ताओं और समर्थकों की नजर इस बात पर टिकी है कि आखिर वह चेहरा कौन होगा, जो बीजेपी की नई पारी की अगुवाई करेगा।

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