Dhirendra Shastri : बाबा बागेश्वर पर शिवसेना का हमला, बताया ‘नरसंहार की सोच रखने वाला'

Dhirendra Shastri : भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता हमेशा से इसकी ताकत रही है, लेकिन हाल के कुछ बयानों और घटनाओं ने इस एकता पर सवाल उठाए हैं। शिवसेना (यूबीटी) ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जिन्हें बाबा बागेश्वर के नाम से जाना जाता है, पर तीखा हमला बोला है। बाबा के ‘हिंदू ग्राम’ बनाने के विचार को शिवसेना ने शर्मनाक और देश की एकता के लिए खतरा बताया है। आइए, इस विवाद की गहराई में उतरकर समझते हैं कि यह मुद्दा क्यों इतना चर्चा में है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ सकता है।
बाबा बागेश्वर का हिंदू ग्राम
धीरेंद्र शास्त्री ने हाल ही में हिंदुओं के लिए अलग गांव बनाने की बात कही, जिसमें अन्य धर्मों के लोगों के लिए कोई स्थान न हो। शिवसेना ने इसे न केवल हिंदू संस्कृति के लिए शर्मनाक बताया, बल्कि इसे देश को बांटने की साजिश का हिस्सा भी करार दिया। ‘सामना’ के संपादकीय में संजय राउत ने लिखा कि ऐसे विचार विश्व में भारत की सांस्कृतिक छवि को धूमिल करते हैं। यह सवाल उठता है कि क्या धर्म के नाम पर अलगाव को बढ़ावा देना उचित है? क्या यह भारतीय संविधान की भावना के अनुरूप है, जो सभी धर्मों को समान सम्मान देता है?
वक्फ विधेयक और धार्मिक ध्रुवीकरण
शिवसेना ने अपने मुखपत्र में वक्फ विधेयक को भी निशाने पर लिया। उनका कहना है कि इस विधेयक ने देश में धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है। पश्चिम बंगाल और बिहार जैसे राज्यों में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए, जिसे शिवसेना ने बीजेपी की रणनीति का हिस्सा बताया। संपादकीय में लिखा गया कि बीजेपी ने इस मुद्दे को जानबूझकर हवा दी, ताकि मणिपुर जैसे गंभीर मुद्दों से ध्यान हटाया जा सके। संसद में वक्फ विधेयक पर घंटों बहस हुई, लेकिन मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के लिए समय नहीं निकाला गया। यह स्थिति देश में धार्मिक तनाव को और गहरा करने वाली साबित हुई।
रामनवमी यात्रा
शिवसेना ने मुंबई में रामनवमी की शोभायात्रा को भी अपने निशाने पर लिया। इस बार की यात्रा का स्वरूप पारंपरिक धार्मिक उत्सव से अलग था। कुछ स्थानों पर यह अराजकता और उन्माद में बदल गई। भीड़ ने मुसलमानों के खिलाफ नारे लगाए, जिसे शिवसेना ने राम भक्ति की भावना के खिलाफ बताया। यह सवाल उठता है कि क्या धर्म के नाम पर नफरत फैलाना उचित है? भारतीय संविधान धर्म को व्यक्तिगत और आध्यात्मिक मामलों तक सीमित रखने की बात करता है, लेकिन क्या आज धर्म का इस्तेमाल राजनीति और विभाजन के लिए हो रहा है?
बीजेपी और बाबा बागेश्वर
‘सामना’ में यह भी आरोप लगाया गया कि बीजेपी धर्म को राजनीति में घसीट रही है। धीरेंद्र शास्त्री जैसे लोग, जो हिंदू ग्राम की वकालत करते हैं, बीजेपी के ‘हिंदुत्व’ के प्रचारक बन गए हैं। संपादकीय में दावा किया गया कि प्रधानमंत्री तक बाबा को ‘छोटा भाई’ कहकर उनका समर्थन करते हैं। यह सवाल उठता है कि क्या बीजेपी का यह हिंदुत्व देश को एकजुट करने के बजाय उसे तोड़ने की दिशा में ले जा रहा है? क्या धर्म के नाम पर अलगाव को बढ़ावा देना भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए उचित है?
भारतीय संविधान और धर्म की भूमिका
भारतीय संविधान धर्म को निजी मामला मानता है। यह किसी भी धर्म को राष्ट्रवाद से जोड़ने की अनुमति नहीं देता। फिर भी, जो लोग संविधान की बात करते हैं, उन्हें अक्सर हिंदू विरोधी या राष्ट्र विरोधी करार दिया जाता है। शिवसेना ने अपने संपादकीय में साफ कहा कि धर्म को राजनीति से अलग रखना जरूरी है। बाबा बागेश्वर जैसे विचार, जो हिंदुओं और अन्य धर्मों के बीच दीवार खड़ी करते हैं, देश की एकता के लिए खतरा हैं। यह विचारधारा न केवल सामाजिक सहजीवन को कमजोर करती है, बल्कि भारत की वैश्विक छवि को भी प्रभावित करती है।