मोहन भागवत ने धर्मांतरण पर दिया चौंकाने वाला बयान, जानें क्या कहा

मोहन भागवत ने वलसाड के श्री भाव भावेश्वर महादेव मंदिर की रजत जयंती में धर्म परिवर्तन पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि लालच और भय से धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। सद्गुरुधाम जैसे केंद्र आदिवासी उत्थान और धार्मिक आचरण को बढ़ावा देते हैं। भागवत ने एकजुटता और आस्था की रक्षा पर जोर दिया।
मोहन भागवत ने धर्मांतरण पर दिया चौंकाने वाला बयान, जानें क्या कहा

शनिवार का दिन गुजरात के वलसाड जिले में खास रहा, जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बारुमल के श्री भाव भावेश्वर महादेव मंदिर की रजत जयंती के अवसर पर लोगों को संबोधित किया। इस खूबसूरत मंदिर के प्रांगण में, जहां आध्यात्मिकता और श्रद्धा का संगम था, भागवत ने धर्म और आस्था के महत्व पर गहरे विचार साझा किए। उनका संदेश स्पष्ट था—धर्म वह प्रकाश है जो जीवन को सुख और शांति की ओर ले जाता है, और इसे लालच या भय के कारण कभी नहीं छोड़ना चाहिए। 

लालच और प्रलोभन से दूर रहने की सीख

मोहन भागवत ने अपने संबोधन में जीवन की रोजमर्रा की चुनौतियों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान अक्सर लालच और प्रलोभन के जाल में फंस जाता है। ये प्रलोभन कभी धन के रूप में, तो कभी सामाजिक दबाव के रूप में सामने आते हैं, जो हमें हमारी जड़ों—हमारे धर्म और संस्कृति—से दूर करने की कोशिश करते हैं। लेकिन भागवत ने जोर देकर कहा कि सच्चा सुख और शांति केवल धर्म के मार्ग पर चलकर ही मिल सकती है। उन्होंने उपस्थित लोगों से आह्वान किया कि वे अपनी आस्था को हर हाल में अडिग रखें, चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हों।

एकजुटता और आत्मरक्षा का आह्वान

संघ प्रमुख ने समाज में एकजुटता की जरूरत पर भी बल दिया। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य किसी से लड़ना नहीं, बल्कि अपने मूल्यों और संस्कृति को संरक्षित करना है। आज भी कुछ ऐसी ताकतें सक्रिय हैं जो धर्म परिवर्तन के जरिए हमारी पहचान को बदलने की कोशिश करती हैं। लेकिन भागवत ने स्पष्ट किया कि हमें न तो भय में जीना है और न ही किसी के दबाव में आना है। उन्होंने कहा कि एकजुट होकर हम न केवल अपनी आस्था की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि समाज को भी मजबूत बना सकते हैं।

महाभारत से प्रेरणा: धर्म का पालन अनिवार्य

मोहन भागवत ने महाभारत का उदाहरण देते हुए धर्म और अधर्म की महीन रेखा को समझाया। उन्होंने बताया कि उस समय भले ही धर्म परिवर्तन जैसी बातें नहीं थीं, लेकिन दुर्योधन ने लालच में आकर अधर्म का रास्ता चुना और पांडवों का हक छीनने की कोशिश की। यह कहानी आज भी प्रासंगिक है। भागवत ने कहा कि हमें अपने दैनिक जीवन में धार्मिक आचरण को अपनाना चाहिए। स्वार्थ, लालच या मोह में फंसकर लिए गए फैसले हमें हमारी आस्था से दूर कर सकते हैं। इसलिए, धर्म को जीवन का आधार बनाना जरूरी है।

सद्गुरुधाम: आदिवासी उत्थान का केंद्र

अपने संबोधन में भागवत ने सद्गुरुधाम की भी चर्चा की, जो आदिवासी क्षेत्रों में सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों के जरिए लोगों को जोड़ता है। उन्होंने बताया कि पहले तपस्वी गांव-गांव जाकर लोगों को सत्संग के माध्यम से धर्म के प्रति जागरूक करते थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, इन केंद्रों की स्थापना हुई, जहां लोग एकत्र होकर धर्म और संस्कृति से जुड़ते हैं। ये केंद्र न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देते हैं, बल्कि आदिवासी समुदायों के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भागवत ने इन प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे केंद्र समाज को सही दिशा दिखाने का काम करते हैं।

धर्म और संस्कृति का संरक्षण हमारा दायित्व

मोहन भागवत का यह संदेश न केवल वलसाड के लोगों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणादायक है। उन्होंने हमें याद दिलाया कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली है जो हमें नैतिकता, एकजुटता और साहस सिखाती है। आज के समय में, जब भौतिकवाद और स्वार्थ का बोलबाला है, भागवत का यह संदेश हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की प्रेरणा देता है। यह हमें सिखाता है कि चाहे कितने भी प्रलोभन सामने आएं, हमें अपनी आस्था और संस्कृति पर गर्व करना चाहिए।

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