Murshidabad Violence : हिंदुओं पर हमले, मंदिरों में आग और पुलिस मूकदर्शक? पीड़ितों ने जो बताया वो रोंगटे खड़े कर देगा

Murshidabad Violence : मुर्शिदाबाद में वक्फ संशोधन बिल के विरोध में भड़की हिंसा में 3 की मौत, कई घायल। उपद्रवियों ने दुकानों-घरों में आगजनी और लूटपाट की। 500 हिंदू परिवारों ने झारखंड में शरण ली। बीएसएफ तैनात, स्थिति सामान्य हो रही है, लेकिन पलायन और पुलिस निष्क्रियता पर सवाल उठ रहे हैं।
Murshidabad Violence : हिंदुओं पर हमले, मंदिरों में आग और पुलिस मूकदर्शक? पीड़ितों ने जो बताया वो रोंगटे खड़े कर देगा

Murshidabad Violence : पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन बिल के विरोध में भड़की हिंसा ने पूरे क्षेत्र को झकझोर कर रख दिया। धुलियान और शमशेरगंज जैसे इलाकों में उपद्रवियों ने जमकर उत्पात मचाया, जिसके चलते तीन लोगों की जान चली गई और कई अन्य घायल हो गए।

इस हिंसक घटना ने न केवल स्थानीय लोगों के दिलों में दहशत पैदा की, बल्कि सैकड़ों हिंदू परिवारों को अपने घर छोड़कर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया। आइए, इस दुखद घटना के पीछे की कहानी और पीड़ितों की आपबीती को करीब से समझते हैं।

हिंसा की आग में झुलसा मुर्शिदाबाद

मुर्शिदाबाद के धुलियान में वक्फ संशोधन बिल के विरोध के नाम पर शुरू हुआ प्रदर्शन देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया। उपद्रवियों ने सैकड़ों दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया। लूटपाट की घटनाओं ने स्थानीय लोगों को डर के साए में जीने को मजबूर कर दिया। कई पीड़ितों ने बताया कि उनके घरों में रखे पैसे और कीमती सामान लूट लिए गए।

इस हिंसा में मंदिरों को भी निशाना बनाया गया, जिससे समुदाय विशेष में गहरा आक्रोश और भय व्याप्त हो गया। स्थानीय निवासी सुनीता साहा ने बताया, “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारा शांत शहर इस तरह की हिंसा का गवाह बनेगा। हमारे घर जलाए गए, और हमारी आवाज दबा दी गई।”

बीएसएफ की तैनाती, फिर भी पलायन

हिंसा के बाद क्षेत्र में बीएसएफ और केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात किया गया, जिससे स्थिति अब धीरे-धीरे सामान्य हो रही है। हालांकि, डर और असुरक्षा की भावना ने हिंदू परिवारों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। करीब 500 परिवार धुलियान से पलायन कर झारखंड और आसपास के राज्यों में अपने रिश्तेदारों के पास शरण लेने को मजबूर हुए।

शमशेरगंज के जाफराबाद गांव में एक पिता-पुत्र की हत्या ने स्थानीय लोगों के मन में खौफ पैदा कर दिया। पीड़ित लखाय साहा ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा, “हमें टारगेट किया गया। हमारे घरों में आग लगा दी गई, और महिलाओं के साथ बदसलूकी की गई। अगर बीएसएफ समय पर नहीं पहुंचती, तो शायद हम भी जिंदा न बच पाते।”

पुलिस और प्रशासन पर सवाल

राज्य पुलिस के आला अधिकारियों का दावा है कि पलायन करने वाले परिवारों को वापस बसाने की कोशिश की जा रही है। कुछ परिवारों को वापस लाया भी गया है, लेकिन स्थानीय लोगों की बात कुछ और कहती है। कई पीड़ितों ने आरोप लगाया कि हिंसा के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

झुमकी साहा ने बताया, “पुलिस तब पहुंची, जब सब कुछ तबाह हो चुका था। हमारी कोई सुनवाई नहीं हुई।” इस बीच, प्रशासन का कहना है कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। फिर भी, पलायन की खबरें और पीड़ितों की आपबीती सवाल उठाती हैं कि क्या प्रशासन समय पर कार्रवाई कर पाया?

एक समुदाय का दर्द और उम्मीद

मुर्शिदाबाद की इस हिंसा ने न केवल सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाया, बल्कि लोगों के बीच विश्वास की कमी को भी उजागर किया। पीड़ित परिवारों का कहना है कि वे अपने घरों को छोड़कर जाने को मजबूर हुए, क्योंकि उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं थी। फिर भी, कई परिवारों ने बीएसएफ और अपने रिश्तेदारों की मदद से नई शुरुआत की उम्मीद जताई है। एक पीड़ित ने कहा, “हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे सुरक्षित रहें। हमारी जिंदगी फिर से पटरी पर आए, यही हमारी प्रार्थना है।”

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