कौन हैं खाटू श्याम? दर्शन के लिए क्यों टूट पड़ते हैं लोग? जानिये पूरा इतिहास

khatu shyam chulkana dham panipat : हारे का सहारा कहे जाने वाले बाबा खाटूश्याम की महिमा कौन नहीं जानता है। राजस्थान के सीकर में खाटू श्याम जी मंदिर है।
कौन हैं खाटू श्याम? दर्शन के लिए क्यों टूट पड़ते हैं लोग? जानिये पूरा इतिहास 
दून हॉराइज़न, नई दिल्ली

हर साल यहां हजारों, लाखों की संख्या में भक्त बाबा के दर्शन को पहुंचते हैं। अगर आप भी खाटूश्याम बाबान को मानते हैं, तो आपको  और इसे राज्य के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, खाटू श्याम जी घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक का अवतार हैं। गर आप खाटूश्याम को मानते हैं, तो आपने उस पेड़ के बारे में सुना होगा…

कहानी महाभारत काल से जुड़ी है। महाभारत काल में पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य पुत्री कामकटंकटा के साथ हुआ था। इनकी एक संतान हुई जिसका नाम बर्बरीक था। बर्बरीक ने अपनी मां से महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जताई। उनकी मां ने उन्हें आज्ञा दी, जब बर्बरीक ने पूछा वो किसका साथ दे, तो उनकी मां ने कहा जो हार रहा हो वो उसके साथ रहें।

बर्बरीक को भगवान शिव और विजया माता का आशीर्वाद प्राप्त था कि उन्हें कोई हरा नहीं सकता था। ऐसे में जब भगवान कृष्ण को यह जानकारी मिली तो वे चिंतित हो गए कि बर्बरीक अगर हार रहे कौरवों के साथ हो गए तो उन्हें हराना मुश्किल होगा। ऐसे में उन्होंने बर्बरीक से अपना चमत्कार दिखाने को कहा। बर्बरीक ने एक तीर से पेड़ के सभी पत्तों में छेद कर दिया, लेकिन भगवान कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छुपा लिया।

इस पर बर्बरीक ने कहा कि उन्होंने तीर को सिर्फ पत्तों पर छेद करने का आदेश दिया था। जिसके समस्त पत्तों में सिर्फ एक बाण से बर्बरीक ने छेद कर दिए थे। इस पीपल के पेड़ के पत्तों में आज भी छेद दिख जाते हैं। यह पेड़ है पानीपत के चुलकाना धाम में।

खाटूश्याम को मानने वाले आज भी इस पीपल के पेड़ की मनोकामना पूरी करने के लिए उसकी परिक्रमा करते हैं और मन्नत का धागा बाधते हैं। माना जाता है कि यहां पर मन्नत का धागा बांधने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती हैं। इसलिए इस पेड़ के दर्शन के लिए लोग यहां दूर-दूर से आते हैं।

आगे क्या हुआ

बर्बरीक का चमत्कार देखकर श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का रुप धरकर उसेके पास गए और बोले जो मैं मागूंगा क्या तुम वह दोगे। श्री कृष्ण ने शीश का दान मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं शीश दान दूंगा। तब श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक ने नमन कर एक ही वार में शीश को धड़ से अलग कर श्री कृष्ण को दान कर दिया। श्री कृष्ण ने शीश को अपने हाथ में लेकर अमृत से सींचकर अमर करते हुए एक टीले पर रखवा दिया।

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