उड़ने के लिए जन्मी’ बच्चियों की विलक्षण प्रतिभा को पहचानना ही उनके सपनों को पंख देने की ओर पहला कदम है

उड़ने के लिए जन्मी’ बच्चियों की विलक्षण प्रतिभा को पहचानना ही उनके सपनों को पंख देने की ओर पहला कदम है

किसी ने ठीक ही कहा है कि “अगर आपको प्यास लगी है तो आपको ही कुएँ तक चलकर जाना होगा, न कि कुआँ खुद आपके पास आएगा”। दुनिया ऐसे कीमती हीरों से भरी पड़ी है जिन्हें अब तक तराशा नहीं गया है, और यही बात छिपी हुई प्रतिभा पर भी लागू होती है।

भारत देश में 130 करोड़ लोग बसते हैं, और ऐसे में करोड़ों घरों में छिपी हुई ऐसी हर एक प्रतिभा को सही मंच मिलना एक बड़ी चुनौती हो सकती है। हालाँकि कुछ लोग अपने भीतर छिपी हुई प्रतिभा को पहचानकर उसे सही मंच प्रदान कर सकते हैं, पर कुछ विशेष प्रतिभा वाले बच्चों के लिए यह मुश्किल हो सकता है। समाज में प्रतिभा को केवल वस्तुनिष्ठ अकादमिक अंकों, उच्च प्रदर्शन, और प्रभुत्व तक ही सीमित कर दिया जाता है।

वहीं कला, जो कि व्यक्तिनिष्ठ होती है और नियत एल्गोरिद्म के अनुसार चलती है, को इस प्रकार से विकसित व मूल्यांकित करना होता है जिससे बच्चे की सही पसंद सामने आ सके। यदि हम चाहते हैं कि हमारी छोटी बच्चियाँ अपने सपनों को पहचानें और जानें कि वे कितनी खास हैं तो सबसे पहले यह अभिभावकों के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वे अपने बच्चे क़ाबिलियत को जानें।  

बच्चों की विलक्षणताएँ बहुत ही छोटी उम्र में उनके विशेष कौशल व प्रतिभा में दिखने लगती हैं। 12 की उम्र तक अधिकतर विलक्षणताएँ एक वयस्क स्तर पर सफलतापूर्वक किसी न किसी कौशल को प्रदर्शित कर देती हैं। वे काफ़ी गहनता के साथ प्रेरित होते हैं और अक्सर घंटों तक अपने कौशल को विकसित करने के प्रति केन्द्रित रहते हैं।

जिन्होंने विलक्षणताओं को बढ़ते हुए देखा है वे बताते हैं कि किस प्रकार 4 वर्ष की छोटी उम्र से ही उनकी अपवदात्मक स्मृति और शीघ्र सीखने की क्षमताएँ विकसित हुईं। उनमें कुछ ऐसे अंतर्मुखी भी होते हैं जिनका बचपन बहुत मुश्किल में बीता हुआ होता है क्योंकि स्कूल के समय उनका अपने समकक्षों के साथ जुड़ना इतना भी सहज नहीं रहा था।

हालाँकि यह सब कही-सुनी बातें भी लग सकती हैं, मगर 10-12 की उम्र तक आते-आते इन विलक्षणताओं के कौशल में वयस्क विशेषज्ञता व अति विशेष प्रतिभा के लक्षण और अधिक उभरकर सामने आने लगते हैं। 

सही प्रतिभा को बढ़ावा देने के लिए यह समझ लेना ज़रूरी है कि बच्चे की विलक्षणता में कौन-कौन से तत्व मौजूद होते हैं। हालाँकि आज भी कई अभिभावक प्रवृत्ति व परवरिश के बीच के विवाद में उलझे हुए हैं, तो भी बच्चे की विलक्षणताओं के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए उनकी आवश्यकताओं के बारे में पर्याप्त जागरुकता होनी आवश्यक है। उनकी प्रतिभा को पनपने के लिए निरंतर अनुकूल परिवेश देते रह कर हम उनके सफ़र को सहज बनाना सुनिश्चित कर सकते हैं जिससे उन्हें अपने सपनों व लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिल सके। 

भारत में अक्सर विशेष प्रकार के कौशल पर केन्द्रित रहने की ही सीख दी जाती है और उसकी आज़ादी को अक्सर बहुत छोटी उम्र से ही कुचला जाता है। लैंगिक असमानता कई शताब्दियों से भारत में एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्या रही है। इसी कारण से यह और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि विलक्षणता की चमक लेकर जन्मी छोटी बच्चियों की प्रतिभा को पहचाना जाए, तथा उसके बारे में विमर्श शुरू किए जाएँ।

गिवइंडिया के साथ मिलकर ZEEL अब उड़ने के लिए जन्मी CSR पहल को लेकर सामने आया है जो कि एक ऐसा कार्यक्रम है जो भारत में बच्चियों की विलक्षणताओं की विशेष प्रतिभा को और भी प्रखर बनाएगा। इसका मिशन है पूरे देश की छोटी बच्चियों के लिए “विलक्षणता इनक्यूबेटर” बनना। ZEEL के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट, श्री उमेश कुमार बंसल ने कहा कि, “उत्कृष्टता हासिल करने की हमारी यात्रा में हमने यह जाना है कि भारतीय कला को सहयोग और फ़ोकस की बहुत सख़्त ज़रूरत है।

कला के विभिन्न रूपों को पुनर्जीवित करने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उन विलक्षण बच्चियों पर ध्यान देना जिन्हें सुर्ख़ियों में लाने की आवश्यकता है। हम उम्मीद करते हैं कि इस पहल से हमें यह जागरुकता फलाने में मदद मिलेगी और यह विलक्षण प्रतिभाएँ भी असम्भव को सम्भव कर दिखाएँगी।” 

इस कार्यक्रम को कावेरी गिफ़्टेड एजुकेशन ऐंड रिसर्च सेंटर (KGERC) द्वारा भी समर्थन प्राप्त है। KGERC प्रतिभावान बच्चों के साथ कार्य करती रही है और यह अच्छी तरह से समझती है कि उनकी कुछ अलग ज़रूरतें होती हैं।

KGERC के एक प्रतिनिधि कहते हैं कि, “इन खास बच्चों की कुछ ख़ास सामाजिक-आर्थिक ज़रूरतें होती हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए उनके और उनके सामर्थ्य के बारे में जागरुक किया जाना ज़रूरी होता है। हमारी पहल से अभिभावकों और शिक्षकों को यह समझने में मदद मिल सकती है कि ऐसे बच्चों की ज़रूरतों पर ध्यान देकर इन विशेष रूप से सक्षम बच्चों में व्यवहार सम्बन्धी समस्याओं को पनपने से या इन्हें जीवन में हार कर पीछे रह जाने से रोका जा सकता है।” 

ऐसी पहल से अभिभावकों को भी मदद मिलेगी कि वे इन विशेष रूप से सक्षम बच्चों के प्रति अत्यधिक चिंतित रहने और उनकी विशेष ज़रूरतों को समझने के बीच एक संतुलन बनाए रख पाएँ। आगे बढ़ने के लिए सीखना ज़रूरी होता है, और इसीलिए इस तरह का कार्यक्रम किसी विलक्षण बच्ची के सपनों को वास्तविकता के पंख लगा सकता है।

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