Mumbai News : मुंबई के मशहूर डॉक्टर ने अचानक उठा लिया खौफनाक कदम, पूरे शहर में फैली सनसनी!

Mumbai News : सोलापुर के प्रसिद्ध न्यूरोसर्जन डॉ. शिरीष वलसांगकर की आत्महत्या की खबर ने न केवल उनके परिवार और मरीजों को, बल्कि पूरे चिकित्सा समुदाय को स्तब्ध कर दिया है। शुक्रवार, 19 अप्रैल 2025 की रात, उन्होंने अपने घर में लाइसेंसी रिवॉल्वर से खुद को गोली मारकर जीवन लीला समाप्त कर ली। इस दुखद घटना ने कई सवाल खड़े किए हैं, जिनका जवाब अभी तक पूरी तरह सामने नहीं आया है। आइए, इस घटना के पीछे की परिस्थितियों और डॉ. वलसांगकर के जीवन पर एक नजर डालते हैं।
क्या हुआ उस रात?
पुलिस के अनुसार, शुक्रवार रात करीब 8:30 बजे, डॉ. शिरीष वलसांगकर ने सोलापुर के मोदी इलाके में अपने घर के बाथरूम में अपनी लाइसेंसी रिवॉल्वर से सिर में गोली मार ली। प्रारंभिक जांच से पता चला है कि दो राउंड गोलियां चलीं, जिनमें से एक उनके सिर में लगी। इस घटना के बाद उन्हें तुरंत सोलापुर के वलसांगकर अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने हजारों मरीजों की जान बचाई थी।
लेकिन गंभीर चोटों के कारण डॉक्टर उनकी जान नहीं बचा सके, और उन्होंने अस्पताल में अंतिम सांस ली। इस खबर ने न केवल उनके सहयोगियों, बल्कि मरीजों और उनके रिश्तेदारों को भी गहरे सदमे में डाल दिया। अस्पताल के आईसीयू के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई, जो इस अप्रत्याशित घटना पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे।
आत्महत्या का कारण
पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया है। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि डॉ. वलसांगकर पिछले कुछ दिनों से तनाव में थे। हालांकि, इस तनाव का सटीक कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है। क्या यह व्यक्तिगत परेशानी थी, पेशेवर दबाव था, या कोई और वजह, इस बारे में पुलिस और उनके करीबी अभी कोई ठोस जानकारी नहीं दे पाए हैं। इस अनिश्चितता ने सोलापुर के चिकित्सा समुदाय में चर्चाओं को जन्म दिया है, जहां लोग इस बात पर हैरान हैं कि इतने सम्मानित और सफल डॉक्टर ने ऐसा कदम क्यों उठाया।
एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
डॉ. शिरीष वलसांगकर केवल एक न्यूरोसर्जन ही नहीं, बल्कि सोलापुर के लिए एक गौरव थे। उन्होंने डीबीएफ दयानंद कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस से विज्ञान में प्री-डिग्री और प्री-प्रोफेशनल डिग्री सम्मान के साथ हासिल की। इसके बाद, उन्होंने डॉ. वीएम मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा शिक्षा पूरी की और शिवाजी यूनिवर्सिटी, साथ ही रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन, लंदन से एमबीबीएस, एमडी और एमआरसीपी की डिग्री प्राप्त की।
उनकी प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे मराठी, कन्नड़, अंग्रेजी और हिंदी में धाराप्रवाह बात कर सकते थे। सोलापुर के वलसांगकर अस्पताल में उन्होंने न केवल स्थानीय मरीजों का इलाज किया, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी सेवाएं दीं। उनके बेटे डॉ. अश्विन और बहू डॉ. सोनाली भी न्यूरोलॉजिस्ट हैं, जो उनके चिकित्सा क्षेत्र में योगदान को और विशेष बनाता है।
चिकित्सा जगत पर असर
डॉ. वलसांगकर की आत्महत्या ने सोलापुर के चिकित्सा समुदाय में एक खालीपन छोड़ दिया है। उनके अस्पताल में इलाज कराने वाले मरीज और उनके परिवार इस खबर से गहरे दुख में हैं। यह घटना मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी प्रकाश डालती है, खासकर उन पेशेवरों के लिए जो उच्च दबाव वाले करियर में काम करते हैं। न्यूरोसर्जन जैसे क्षेत्र में, जहां हर दिन जिंदगियां बचाने की जिम्मेदारी होती है, तनाव और मानसिक थकान का खतरा हमेशा बना रहता है। यह घटना समाज को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने डॉक्टरों और चिकित्सा पेशेवरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान दे रहे हैं?