Bihar Assembly Election : बिना CM घोषित किए ही चुनाव जीतने की तैयारी? जानिए बिहार में चल रही सियासी जुगलबंदी

Bihar Assembly Election : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन की रणनीति तेज। तेजस्वी यादव कोआर्डिनेशन कमेटी के अध्यक्ष बने, पशुपति पारस गठबंधन में शामिल। सीएम चेहरे पर सस्पेंस बरकरार, कांग्रेस बिना चेहरा लड़ने की तैयारी में। सीट बंटवारे और जातीय समीकरण पर नजर।
Bihar Assembly Election : बिना CM घोषित किए ही चुनाव जीतने की तैयारी? जानिए बिहार में चल रही सियासी जुगलबंदी

Bihar Assembly Election : बिहार की सियासी जमीन पर विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। राजनीतिक दलों के बीच शह-मात का खेल शुरू हो चुका है, और महागठबंधन अपनी रणनीति को मजबूत करने में जुटा है। पटना से दिल्ली तक बैठकों का दौर जारी है, लेकिन मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर सस्पेंस अब भी बरकरार है। क्या तेजस्वी यादव होंगे महागठबंधन का चेहरा, या कांग्रेस का कोई और फॉर्मूला बिहार की सियासत को नई दिशा देगा? आइए, इस सियासी रणनीति को समझते हैं।

महागठबंधन की एकजुटता और नई ताकत

पटना में गुरुवार को हुई महागठबंधन की अहम बैठक ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी। इस बैठक में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव को एक कोआर्डिनेशन कमेटी का अध्यक्ष चुना गया, जो गठबंधन के सभी दलों के बीच तालमेल सुनिश्चित करेगी।

इस कमेटी में कांग्रेस, वामपंथी दल, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), और अब लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता पशुपति पारस की पार्टी भी शामिल होगी। पशुपति पारस का महागठबंधन में आना एक बड़ा सियासी दांव माना जा रहा है, जो गठबंधन को नई ताकत दे सकता है। वहीं, मुकेश सहनी भी निषाद समुदाय के वोटों को साधकर गठबंधन की स्थिति को मजबूत कर रहे हैं।

बैठक में तेजस्वी यादव ने नेतृत्व की कमान संभाली, लेकिन मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका। तेजस्वी ने इस सस्पेंस को हल्के अंदाज में टालते हुए कहा, “सब कुछ एक दिन में तय नहीं होगा, थोड़ा इंतजार का मजा लीजिए।” उन्होंने दावा किया कि महागठबंधन पूरी तरह एकजुट है और बिहार की जनता के मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ेगा। दूसरी ओर, एनडीए पर निशाना साधते हुए तेजस्वी ने कहा कि चिंता उन्हें होनी चाहिए, जो अपनी जमीन खो रहे हैं।

सीएम चेहरे पर क्यों अटकी बात?

महागठबंधन की रणनीति में सबसे बड़ा सवाल मुख्यमंत्री पद का चेहरा है। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव बार-बार यह कह चुके हैं कि तेजस्वी ही गठबंधन के नेता होंगे। लेकिन कांग्रेस इस मुद्दे पर सतर्क रुख अपना रही है। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव की तर्ज पर बिहार में बिना किसी सीएम चेहरे के चुनाव लड़ना चाहती है। लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया था, और यही फॉर्मूला बिहार में अपनाने की तैयारी है।

कांग्रेस का मानना है कि तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा घोषित करने से सवर्ण, दलित, और अन्य पिछड़ी जातियों के वोट छिटक सकते हैं। दिल्ली में हुई एक बैठक में राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने तेजस्वी को यह बात स्पष्ट कर दी थी। हालांकि, कांग्रेस ने यह आश्वासन जरूर दिया कि अगर महागठबंधन सत्ता में आता है और आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनती है, तो तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन चुनाव से पहले उनके नाम की घोषणा को कांग्रेस जोखिम भरा मान रही है।

कांग्रेस की रणनीति और जातीय समीकरण

बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं। कांग्रेस इस बार सवर्ण, मुस्लिम, और दलित वोटों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी का मानना है कि बिना सीएम चेहरे के चुनाव लड़ने से किसी भी समुदाय के वोट छिटकने का खतरा कम होगा। इसके लिए कांग्रेस ने एक कोआर्डिनेशन कमेटी के गठन पर जोर दिया, जो सभी दलों के बीच संतुलन बनाए रखे। इस कमेटी के जरिए कांग्रेस यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सीट बंटवारे और रणनीति में सभी सहयोगी दलों की सहमति हो।

वहीं, आरजेडी अपने परंपरागत यादव और मुस्लिम वोट बैंक के साथ-साथ अन्य पिछड़ी जातियों को भी जोड़ने की कोशिश में है। मुकेश सहनी निषाद समुदाय को साध रहे हैं, जबकि पशुपति पारस के आने से गठबंधन को दलित और अन्य समुदायों के वोट मिलने की उम्मीद है। लेकिन सीट बंटवारे का पेंच अभी सुलझा नहीं है। कांग्रेस पिछली बार की तरह 70 सीटें चाहती है, जबकि आरजेडी का मानना है कि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट कम होने के कारण 2020 में गठबंधन को नुकसान हुआ था। इस बार बढ़े हुए सहयोगी दलों के कारण सीटों का बंटवारा और भी जटिल हो गया है।

सीट बंटवारे का इंतजार

महागठबंधन में सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय करना अभी बाकी है। आरजेडी अपने मजबूत क्षेत्रों में ज्यादा सीटें चाहती है, जबकि कांग्रेस ऐसी सीटों की मांग कर रही है, जहां जीत की संभावना ज्यादा हो। वामपंथी दल और छोटे सहयोगी भी बराबरी की हिस्सेदारी चाहते हैं। इस बीच, कांग्रेस ने कन्हैया कुमार और पप्पू यादव जैसे नेताओं को मैदान में उतारकर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है। दूसरी ओर, आरजेडी जानती है कि कांग्रेस के बिना मुस्लिम वोटों में सेंध लग सकती है, और कांग्रेस को भी अपने कमजोर संगठन का अंदाजा है। ऐसे में दोनों दल एक-दूसरे को ताकत दिखाते हुए ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की जुगत में हैं।

बिहार की जनता का भरोसा जीतने की चुनौती

महागठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती बिहार की जनता का भरोसा जीतना है। बेरोजगारी, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर गठबंधन को एकजुट होकर अपनी रणनीति पेश करनी होगी। तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि महागठबंधन इन मुद्दों पर जनता के साथ है और एनडीए के खिलाफ मजबूत विकल्प पेश करेगा। लेकिन सीएम चेहरे और सीट बंटवारे पर सस्पेंस कायम रहने से गठबंधन की रणनीति पर सवाल भी उठ रहे हैं।

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन अपनी एकजुटता को कितना मजबूत रख पाता है और बिहार की सियासत में कौन सा समीकरण काम करता है। क्या तेजस्वी यादव का नेतृत्व गठबंधन को सत्ता तक पहुंचाएगा, या कांग्रेस का फॉर्मूला बिहार में नया इतिहास रचेगा? सियासी पंडितों की नजर अब इस सस्पेंस के खुलने पर टिकी है।

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