Pashupatinath : क्यों भगवान शिव कहलाए पशुओं के स्वामी, जानिए इसके पीछे छिपी रहस्यमयी कहानी

Pashupatinath : नेपाल की राजधानी Kathmandu में स्थित विश्वप्रसिद्ध Pashupatinath Temple केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि Lord Shiva के गूढ़ "Pashupatinath" रूप की दिव्य अभिव्यक्ति है। 
Pashupatinath : क्यों भगवान शिव कहलाए पशुओं के स्वामी, जानिए इसके पीछे छिपी रहस्यमयी कहानी

Pashupatinath : Kathmandu में स्थित विश्वविख्यात (Pashupatinath Temple) न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि Lord Shiva के उस दिव्य स्वरूप की जीवित अभिव्यक्ति है जिसे हम “Pashupatinath” कहते हैं।

इस नाम का उल्लेख आते ही मन में करुणा, न्याय और मोक्ष की छवियाँ उभरने लगती हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि “पशु” का मतलब यहां सिर्फ जानवर नहीं है? और “पति” का तात्पर्य केवल स्वामी नहीं, बल्कि वह मार्गदर्शक है जो अज्ञानता के अंधकार से मुक्ति दिलाता है।

संस्कृत में “पशु” शब्द उन सभी जीवों के लिए प्रयुक्त होता है जो मोह, भ्रम और संसार के बंधनों में जकड़े हुए हैं। इसी लिए Shiva जब “Pashupatinath” बनते हैं, तो वह केवल राक्षसों के संहारक नहीं बल्कि जीवन के सत्य को पहचानने वाले आत्माओं के उद्धारक भी होते हैं।

वह वही शिव हैं जिन्होंने तब यह रूप धारण किया जब पृथ्वी अधर्म से कांप उठी थी। देवता भी असहाय हो गए थे। एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, जब एक दिव्य रथ की सवारी के समय Shiva ने सभी प्राणियों से उनकी पशु प्रवृत्तियों को स्वीकार करने को कहा, तभी उन्होंने खुद को हर आत्मा का स्वामी घोषित किया।

और तभी से उनका नाम पड़ा Pashupatinath—वो जो न केवल शरीर का बल्कि आत्मा का भी स्वामी है। नेपाल की राजधानी Kathmandu स्थित Pashupatinath Temple में विराजमान चारमुखी शिवलिंग इस सिद्धांत को और गहराई देता है।

यह शिवलिंग ब्रह्मांड की चार दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है और ऐसा माना जाता है कि जब इस क्षेत्र में आतंक फैला था, तब भगवान Shiva स्वयं यहां प्रकट हुए थे।

यह मंदिर आज भी लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है, जहां लोग केवल पूजन नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और चेतना की तलाश में आते हैं। Lord Shiva का यह “Pashupatinath” स्वरूप उन सभी को मोक्ष की राह दिखाता है, जो जीवन की उलझनों में खो चुके हैं।

वास्तव में, Pashupatinath केवल एक धार्मिक उपाधि नहीं, बल्कि एक चेतना है—एक गूढ़ संदेश है कि जब तक हम अपनी पशु प्रवृत्तियों को स्वीकार नहीं करते, तब तक मुक्ति संभव नहीं। और जब हम स्वीकार कर लेते हैं, तभी Shiva हमें बंधनों से मुक्त करते हैं।

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