9 साल से नरक जैसी जिंदगी जी रहे लोग! सिरसा थेहड़ के विस्थापितों को कब मिलेगा इंसाफ? कुमारी सैलजा ने सरकार से मांगा जवाब

सिरसा थेहड़ से 713 परिवारों को हटाए नौ साल बीत गए, पर कुमारी सैलजा का सवाल बरकरार- बिना योजना और बजट के क्यों उजाड़ा गया? केंद्र सरकार से मांग: जमीन विकसित करें, सीमा तय करें, और विस्थापितों को स्थायी आवास दें।
9 साल से नरक जैसी जिंदगी जी रहे लोग! सिरसा थेहड़ के विस्थापितों को कब मिलेगा इंसाफ? कुमारी सैलजा ने सरकार से मांगा जवाब

चंडीगढ़ : सिरसा की सांसद और कांग्रेस की महासचिव कुमारी सैलजा ने इस मामले में केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। उनका कहना है कि बिना किसी योजना और बजट के 713 परिवारों को उनके घरों से उजाड़ दिया गया, और पिछले नौ सालों से ये लोग नरक जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं। आखिर सरकार का मकसद क्या था? क्या सिर्फ जमीन खाली करवाना ही काफी है, या उन परिवारों की जिंदगी को पटरी पर लाने की भी जिम्मेदारी बनती है?

नौ साल का इंतजार, टूटे वादे

सिरसा थेहड़ को पुरातत्व विभाग ने 1932 में सूचीबद्ध किया था। यह 85.5 एकड़ में फैला एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसे खाली कराने के लिए विभाग ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। साल 2016 में राज्य सरकार ने 713 परिवारों को वहां से हटाकर हुडा सेक्टर-19 में अस्थायी आवासों में ठहराया। उस वक्त वादा किया गया था कि इन परिवारों को स्थायी जमीन दी जाएगी। लेकिन नौ साल बीत जाने के बाद भी न तो जमीन मिली, न ही बुनियादी सुविधाएं। कुमारी सैलजा ने इसे सरकार की नाकामी करार देते हुए कहा कि इन लोगों को बेसहारा छोड़ दिया गया है।

सरकार के पास न योजना, न बजट

लोकसभा में 23 मार्च 2025 को केंद्रीय पर्यटन और कला संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सैलजा के सवाल का जवाब दिया। उन्होंने साफ कहा कि सिरसा थेहड़ को विकसित करने के लिए न कोई योजना थी, न बजट आवंटित किया गया था। अगर केंद्र सरकार फंड दे, तभी इस जमीन पर कुछ काम हो सकता है। सैलजा ने इस जवाब पर कड़ा ऐतराज जताया। उनका सवाल था- जब सरकार के पास कोई प्लान ही नहीं था, तो इन परिवारों को क्यों बेघर किया गया? क्या सिर्फ जमीन खाली कराना मकसद था, बिना यह सोचे कि आगे क्या होगा?

थेहड़ की सीमा पर सवाल

कुमारी सैलजा ने एक और अहम मुद्दा उठाया। पुरातत्व विभाग 85.5 एकड़ जमीन को अपना बता रहा है, लेकिन इसकी सीमा साफ नहीं है। कई परिवार दशकों से वहां रह रहे हैं, जिनके पास जमीन की रजिस्ट्री भी है। सैलजा का कहना है कि अगर यह जमीन पुरातत्व विभाग की है, तो इन रजिस्ट्रियों का क्या मतलब? उन्होंने मांग की कि थेहड़ की सीमा का दोबारा निर्धारण हो और खाली कराई गई जमीन को विकसित किया जाए। साथ ही, विस्थापित परिवारों के लिए स्थायी आवास की व्यवस्था हो।

लोगों की उम्मीदों का सवाल

यह मामला सिर्फ जमीन का नहीं, बल्कि उन 713 परिवारों की जिंदगी का है, जो हर दिन उम्मीद के सहारे जी रहे हैं। कुमारी सैलजा ने सरकार से अपील की है कि वह अपने वादों को पूरा करे और इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित करते हुए प्रभावित लोगों को न्याय दे। सिरसा थेहड़ का भविष्य अब सरकार के अगले कदम पर टिका है। क्या ये परिवार कभी अपने सपनों का घर पा सकेंगे, या यह सवाल संसद की फाइलों में दबकर रह जाएगा?

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