देहरादून एक्सक्लूसिव : सड़क पर एक्स्पायर्ड दवाइयां, हलक में नोनिहालो की जिंदगी

देहरादून एक्सक्लूसिव : सड़क पर एक्स्पायर्ड दवाइयां, हलक में नोनिहालो की जिंदगी

देहरादून : उत्तराखंड बनने के बाद राजधानी देहरादून का माफियाओं के कारण बुरा हाल है कहीं खनन-माफिया, तो कहीं भू-माफिया। पर हम आज बात कर रहे है ड्रग माफिया की। यह ड्रग माफिया किस तरह से प्रदेश में काम कर रहा है।

इसका जीता जागता उदाहरण है बाहर सड़कों पर पड़ी वेस्टेज जिसे हम एक्स्पायर्ड डेट की दवाई भी कह सकते हैं। इन दवाइयों में तरह-तरह की नशीली दवाइयां, एंटी एलर्जी  और पेन किलर जैसी मेडिसिन भी शामिल है।

जिससे आसपास के रहने वाले लोगों का भी जीना दुश्वार हो रहा है। ऐसा ही एक मामला पूर्व में भी संज्ञान में आया था जब मीडिया ने इन मुद्दों को उठाया। हमारे संवाददाता ने जब पूछताछ की तो नगर निगम बात को एक दूसरे पर डालते नजर आया।

आज एक ऐसा ही मामला देहरादून के मन्नू गंज (वार्ड नंबर - 19) से प्रकाश में आया है जब हमारे संवाददाता वहां पहुंचे उन्होंने स्थिति का जायजा लिया तो वह भी देख कर दंग रह गए कि किस तरह से एक मोहल्ले में जो शहर का क्षेत्र माना जाता है उस इलाके में किस तरह से दवाइयां खुलेआम एक नगर निगम के ठेले में डाली गई थी।

यह दवाई कहां से आई इसका तो अभी पता नहीं चल पाया है लेकिन इस तरह के वाक्या पूर्व में भी हो चुके हैं। इस संबंध में जब मीडिया ने बात करी तो किसी को इसकी कोई खबर नहीं थी। लेकिन विषय यह है कि इन एक्स्पायर्ड दवाओं में भारी मात्रा में ऐसी दवाइयां भी थी जो नशे के काम आ सकती है जिसे आप नीचे दिए गए वीडियो में आसानी से देख सकते है।  

देखें वीडियो :

इस संबंध में हमारे संवाददाता द्वारा मनोज कुकरेती जी से वार्ता की गई तो उन्होंने कहा कि यह डिपार्टमेंट उनके अंतर्गत नहीं आता है और उन्होंने नीरज कुमार का नंबर दिया उनका नंबर मिलाने पर नहीं उठा। लेकिन सवाल वही  बना हुआ है इस तरह की एक्स्पायर्ड और खतरनाक दवाएं सड़क पर गिरा दी जाती है और कोई इसकी सुध भुध तक नहीं लेने आता।

आखिर स्वास्थ्य विभाग या नगर निगम कहा सोया हुआ है। ऐसी दवाओं को समाप्त करने का भी एक प्रावधान होता है, जिसमे दवा की गोलियों को पैकिंग से निकल कर डिस्पोज़ किया जाता है ताकि कोई उसका गलत इस्तेमाल न कर सके।

ऐसे मामलों को संज्ञान में लेते हुए नगर निगम को कठोर से कठोर सजा का प्रावधान करना चाहिए या कम से कम ऐसा करने वाले का चालान तो काटना ही चाहिए। उसका कारण यह भी है कि यदि कोई बच्चा या जानवर उसको खा लेता है तो उसकी जान के लाले पड़ सकते हैं, अगर ऐसा होता है तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी, शासन, प्रशासन या फिर उस व्यक्ति की जिसने इस तरह का कृत्या किया।

इस सन्दर्भ में जब नगर निगम के क्षेत्रीय सुपरवाइजर से संपर्क किया गया तो उन्होंने तुरंत कारवाही करते हुए ठेले को वहां से हटा दिया। बाकी क्या इतना करना काफी है, अब देखना ये है की नगर निगम या स्वास्थ्य विभाग इस घटना पर किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया देता है।

इस मामले के संज्ञान में आते ही विकास गर्ग-प्रदेश अध्यक्ष, ह्यूमन राइट्स कमेटी उत्तराखंड ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी जिसे आप नीचे वीडियो में देख सकते है।    

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