Dehradun News : क्या हरदा का 'सनातनी चोला' सिर्फ दिखावा है? मनवीर सिंह चौहान ने खोली पूरी पोल

Dehradun News : देहरादून की सियासी हलचल में एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, जिन्हें प्यार से हरदा कहा जाता है, चर्चा का केंद्र बने हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान ने हरदा पर तीखा हमला बोला है। चौहान का कहना है कि हरदा अब तीर्थों और मंदिरों की शरण में तो जा रहे हैं, लेकिन उनका यह कदम सच्ची भक्ति से ज्यादा सियासी चालबाजी का हिस्सा दिखता है। आइए, इस विवाद की गहराई में उतरकर समझते हैं कि आखिर माजरा क्या है।
गोलज्यू मंदिर विवाद
हाल ही में हरदा ने गोलज्यू मंदिर में अर्जी लगाने की बात कही, जिसे लेकर चौहान ने उन पर निशाना साधा। चौहान ने कहा कि हरदा कोई सिद्ध संत नहीं हैं कि उनकी हर बात को सच मान लिया जाए। गोलज्यू महाराज को उत्तराखंड में न्याय का देवता माना जाता है, जो गुण और दोष के आधार पर फैसला सुनाते हैं। चौहान का तंज था कि हरदा अपनी सियासी गलतियों को छिपाने के लिए अब देवताओं की शरण में जा रहे हैं, लेकिन जनता और देव अदालत दोनों उनकी सच्चाई से वाकिफ हैं। हरदा की सियासत ने कई बार सनातनियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है, और अब वह खुद को निर्दोष साबित करने की जद्दोजहद में हैं।
गंगा सम्मान या अपमान
चौहान ने हरदा के मुख्यमंत्री कार्यकाल को भी कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने गंगा सम्मान यात्रा का जिक्र करते हुए सवाल उठाया कि हरदा ने गंगा मां का कितना सम्मान किया? चौहान ने आरोप लगाया कि हरदा ने गंगा को नाले का रूप बताकर न केवल मां गंगा का अपमान किया, बल्कि सनातनियों और अपने पुरखों की आस्था को भी चोट पहुंचाई। उत्तराखंड की जनता, जो गंगा को मां मानती है, हरदा के इस रवैये को भूली नहीं है। चौहान ने यह भी कहा कि हरदा अब अपनी गलतियों का ठीकरा भाजपा पर फोड़ रहे हैं, जो जनता की नजरों में महज एक सियासी नौटंकी है।
डेमोग्राफी बदलने का आरोप और तुष्टिकरण की सियासत
चौहान ने हरदा पर तुष्टिकरण की सियासत करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हरदा के कार्यकाल में मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बात सामने आई थी, जिसे लेकर उनके सहयोगी सार्वजनिक मंचों पर दावे करते रहे। इसके अलावा, जुम्मे की नमाज का मुद्दा भी हरदा के समय का है, लेकिन वह इसके लिए भी भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
चौहान ने उत्तराखंड की बदलती डेमोग्राफी का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ क्षेत्रों में अल्पसंख्यक आबादी तेजी से बढ़ी है, जिसे लेकर जनता में चिंता है। उन्होंने लैंड जिहाद और लव जिहाद जैसे मुद्दों पर भी हरदा को घेरा, और कहा कि वह यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) जैसे कानूनों के खिलाफ खड़े होकर तुष्टिकरण की सियासत कर रहे हैं।
भाजपा का जवाब
चौहान ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई में भाजपा सरकार के प्रयासों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि धामी सरकार ने बदलती डेमोग्राफी को समझते हुए कड़े कानून बनाए हैं। अतिक्रमण के खिलाफ चल रहा अभियान जनता का भरोसा जीत रहा है, लेकिन कांग्रेस और हरदा इसका विरोध कर रहे हैं। चौहान ने सुझाव दिया कि हरदा को अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने की बजाय आत्ममंथन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के लिए बहुसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना न केवल गलत है, बल्कि एक सामाजिक अपराध भी है।
पश्चाताप की राह या सियासी नौटंकी?
चौहान ने हरदा को नसीहत दी कि वह देव दरबार में सच्चे मन से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की जनता हरदा के सनातनी चोले को ढोंग मानती है, और उनकी सौगंधों पर भरोसा नहीं करती। चौहान का कहना था कि हरदा अभी तक अपने पिछले कर्मों का दंड भुगत रहे हैं, और उन्हें सच्चे पश्चाताप की जरूरत है। उत्तराखंड की जनता, जो अपनी आस्था और संस्कृति पर गर्व करती है, हरदा के इस रवैये को बारीकी से देख रही है।
यह विवाद एक बार फिर उत्तराखंड की सियासत में आस्था और राजनीति के बीच की जटिल रेखा को उजागर करता है। हरदा का मंदिरों में जाना और गोलज्यू महाराज की शरण में जाना क्या वाकई उनकी आस्था का प्रतीक है, या यह जनता की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश है? चौहान का यह बयान न केवल हरदा पर सवाल उठाता है, बल्कि उत्तराखंड की जनता को भी सोचने पर मजबूर करता है कि सियासत में आस्था का कितना स्थान है।